
“जूनियर वकील का दर्द…”
1. “जूनियर वकील” को देखते ही एक सूट बूट वाला परेशानी छिपाए मुस्कुराता हुआ इन्सान नज़र आता है…
2. कानून में “जूनियर वकील” नाम का कोई अस्तित्व नहीं है लेकिन ऐसे इन्सान भारत के सभी न्यायालय में पाए जाते हैं, वकालत के पेशे में इनकी संख्या 80% से ज्यादा होती है…
3. अपने सीनियर से बिना गलती के डांट खाने वाला यह “जूनियर वकील” 12वीं कक्षा या स्नातक के बाद अनगिनत परीक्षाएं देकर उत्तीर्ण होता है…
4. वकालत की परीक्षा पास करने के बाद, बार कौंसिल में, पंजीकृत होने के लिए तथा एडवोकेट वेलफेयर फण्ड में हज़ारों रुपये जमा कराता है, उसके बाद बार कौंसिल ऑफ इंडिया की परीक्षा भी पास करता है, उक्त परीक्षा का फॉर्म भरने के लिए “जूनियर वकील साहब” को हज़ारों रुपये देने पड़ते हैं…
5. माता-पिता, अपने बेटे पर इतना बड़ा निवेश करने के बाद वकील बनते ही कमाई की अपेक्षा करने लग जाते हैं…
6. अब खोज शुरू होती है एक अदद “सीनियर वकील” की, जो काफी नखरों के बाद, साथ काम करने की अनुमति देता है, जबकि सीनियर वकील साहब को, एक निःशुल्क कर्मचारी प्राप्त होने की मन में जबर्दस्त खुशी होती है…
7. जूनियर वकील साहब माता-पिता से लिए खर्चे से मोटरसाईकिल में पेट्रोल भरवा कर, सूटेड बूटेड होकर चलते हैं न्यायालय की ओर…
8. सुबह-सुबह पहले सीनियर वकील साहब के चैंबर में फाइलों का बस्ता और कई बार सीनियर वकील साहब को भी बस्ते के साथ मोटरसाईकिल पर बिठाकर कोर्ट ले जाना पड़ता है…
9. सीनियर वकील साहब, डायरी के साथ जूनियर वकील साहब को न्यायालयों में दौड़ाते हैं कि मामलों में तारीखें ले आओ, तो वकील साहब न्यायालय के चपरासी, बाबू, पेशकार, जमादार और मजिस्ट्रेट/जज साहब के हाथ जोड़-जोड़कर तारीखें लाते हैं…फाइलें और डायरी लिए सीनियर वकील साहब के पीछे-पीछे दौड़ना प्रमुख काम होता है…
10. सभी काम सही करने के बावजूद जब तक सीनियर वकील साहब लताड़ नहीं लगाएं तब तक सीनियर वकील साहब का भोजन नहीं पचता है… घर से अपना स्वयं का लंच बॉक्स लाना होता है और कई बार चाय भी माता-पिता के द्वारा दिए गए खर्चे में से पीनी एवं सीनियर वकील साहब को पिलानी भी पड़ती है…
11. न्यायालय के तुरंत बाद सीनियर वकील साहब के चैम्बर में फिर से जाना होता है और कुछ बची हुई गालियां चैम्बर में भी खानी पड़ती है… रात के लगभग 10-11 बजे जूनियर वकील साहब को घर जाने के लिए छोड़ा जाता है…
12. जूनियर वकील साहब घर जाने पर चेहरे पर झूठी मुस्कान रखते हैं ताकि परिवारजनों को तनाव नहीं हो… दूसरे दिन सुबह जल्दी उठकर फिर से वही प्रक्रिया रोजाना के लिए अपनानी पड़ती है…
13. वर्षों तक जूनियरशिप करने के बावजूद सीनियर वकील साहब कोई वेतन या मानदेय नहीं देते हैं…कमाई नहीं लाने के कारण घर-परिवार में ताने सुनने को मिलते हैं और जूनियर वकील साहब की पीड़ा सुनने या समझने की कोई कोशिश ही नहीं करता है…
14. जूनियरशिप के दौरान सीनियर वकील साहब द्वारा कही गई गलत बातों का विरोध करने पर, चैंबर से निकालने की धमकी तुरंत दे दी जाती है…
15. पढ़ाई पूरी होने के पश्चात वकालत करते-करते जूनियर वकील साहब की उम्र शादी लायक हो जाती है लेकिन वकालत के पेशे में आई गिरावट के कारण, विवाह के अच्छे प्रस्ताव नहीं आ पाते हैं…वकालत के पेशे में आई गिरावट का कारण जूनियर वकील नहीं होकर, सीनियर वकील ही होते हैं क्योंकि जूनियर वकील ने तो वकालत शुरू ही की होती है अतः गिरावट वाली कमाई, सीनियरों द्वारा अर्जित की गई होती है…
16. जूनियर वकील साहब के पास कानून देखने के लिए किताबें नहीं होती है अतः उसको सामान्यतः सीनियर वकील साहब के चैम्बर की किताबों पर निर्भर रहना पड़ता है…
17. सुबह जल्दी उठने से लेकर देर रात्रि तक की जाने वाली इस मजदूरी के कारण जूनियर वकील साहब के व्यक्तिगत संबंध, समयाभाव के कारण चल बसते हैं…
18. जूनियर वकील साहब के कहने पर किसी मित्र का मुकदमा, सीनियर वकील साहब फ्री में नहीं लड़ते हैं और साथ में यह ज्ञान भी पेल देते हैं कि वकालत के व्यवसाय में किसी का मामला फ्री में नहीं लड़ना चाहिए…
19. कोई मामला जब जूनियर वकील साहब किसी सीनियर वकील साहब के पास लेकर जाते हैं तो सीनियर वकील साहब पक्षकार से पूर्ण फीस ले लेते हैं और जूनियर वकील साहब को इसके बदले कुछ भी नहीं मिलता है…
20. न्यायालय के समक्ष पैरवी करते समय मजिस्ट्रेट या जज साहब ऐसे जूनियर वकील साहब को, केवल तारीखें लेने वाला वकील समझते हैं और ज्यादा महत्व नहीं देते हैं…
21. समाज और न्यायालय में जूनियर वकील को वकील “साहब” कहा जाता है लेकिन जूनियर वकील अपने मन में जानता है कि सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी भी वकील साहब कमा नहीं पाते हैं…सुबह जल्दी उठकर रात तक किया जाने वाला काम बंधुआ मजदूरी समझकर, जूनियर वकील साहब वर्षों तक करते रहते हैं और इसी को अपनी नियति समझ लेते हैं…
22. वकालत से आजीविका नहीं चलने पर आजीविका चलाने के लिए यदि वकालत के साथ कोई दूसरा काम कर लिया तो बार कौंसिल वकालत का लाइसेंस रद्द करने के लिए तैयार रहती है…
23. सीनियर वकील साहब की बंधुआ मजदूरी छोड़ देने पर सीनियर वकील साहब, ऐसे जूनियर वकील को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं क्योंकि अब वर्षों से उनकी बेगार निकालने वाला उनके चैंबर को छोड़कर जा रहा होता है…
24. जब-जब इस योग्य “जूनियर वकील” ने independent(स्वतन्त्र) होकर वकालत शुरू की है तब-तब हमेशा मन में यह मलाल रहता है कि इतने वर्ष तक बस्ते और डायरी उठाने की बजाय अगर अलग से वकालत की होती तो अब तक अच्छे वकील के रूप में स्थापित हो चुके होते..
इस प्रकार यह निरीह प्राणी “जूनियर वकील” वर्षों तक अपनी तकलीफ होठों की झूठी मुस्कान के नीचे दबाकर रखता है…Lockdown ने इन वकील साहब की पीड़ा को अत्यधिक बढ़ा दिया है क्योंकि न सीनियर वकील साहब, न सरकार और न ही बार कौंसिल इनकी सुध ले रही है…केवल इनका मज़ाक बनाने के लिए नोटिफिकेशन जारी किए जा रहे हैं…
आपका अपना
नोट- लेख सोशल मीडिया से प्राप्त